दिनांक 08-4-2-21 से आगे, दूसरी, समापन कड़ी
बहरहाल वर्ष 1986 में संस्था के द्वारा 1981 से 1985 तक की श्रेष्ठ लघुकथाओं का
संकलन 'तीसरा क्षितिज' सतीश राठी के संपादन में पंकज प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित किया गया, जिसके प्रकाशन के लिए दिल्ली में डॉ कमल चोपड़ा ने बहुत सहयोग प्रदान किया। अपनी गुणवत्ता के कारण यह पुस्तक उस समय की चर्चित लघुकथा पुस्तक के रूप में रही।वर्ष 1986 में ही क्षितिज का वार्षिक अंक सतीश राठी एवं सुरेश बजाज के संपादन मैं प्रकाशित हुआ। अभी तक के काम पर सारे देश से प्रशंसा के ढेर सारे पत्र आए थे और कुछ चुनिंदा पत्रों को इस अंक के प्रारंभ में शामिल कर उन सब की सराहना को स्थान दिया गया। इस अंक में दिल्ली से डॉ कमल चोपड़ा की लघुकथा मां पराई, राजकुमार गौतम की लघुकथा 'दो स्थितियों का लेखक', विष्णु प्रभाकर की लघुकथा 'दोस्ती', सुभाष नीरव की लघुकथा 'रफ कॉपी' शामिल की गई। हरियाणा से राजकुमार निजात की लघुकथा 'चिंता', तरुण जैन की लघुकथा 'भीड़', सिंधु जुनेजा की लघुकथा 'विकल्प',शमीम शर्मा की लघुकथा 'जीवन मृत्यु', प्रेम सिंह बरनालवी की लघुकथा 'औरत' शामिल की गई। पंजाब से दर्शन मितवा की लघुकथा 'औरत और मोमबत्ती', खुशविंदर कुमार की लघुकथा 'पुलिसवाला' शामिल हुई। उत्तर प्रदेश से पुष्कर द्विवेदी की लघुकथा 'अतीत होता भविष्य', श्यामसुंदर चौधरी की लघुकथा 'कारण', राजकुमार सिंह की लघुकथा 'खुशहाल लोग', चित्रेश की लघुकथा 'प्रेरणा', निहाल हाशमी की लघुकथा 'रंगदार आदमी बदरंग तितली', दिनेश रस्तोगी की लघुकथा 'आदमी और राजा' शामिल की गई। राजस्थान से अंजना अनिल की लघुकथा 'करंट टॉपिक', माधव नागदा की लघुकथा 'काल' शामिल की गई। महाराष्ट्र से शंकर पुणतांबेकर की लघुकथा 'दधीचि', मातादीन खरवार की लघुकथा 'तंगहाली में', रतीलाल शाहीन की लघुकथा 'महान आत्मा' शामिल की गई। बिहार से अतुल मोहन प्रसाद की लघुकथा 'प्रस्फुटन', तारिक असलम तस्नीम की लघुकथा 'किस्मत वाला', नरेंद्र नाथ श्रीवास्तव की लघुकथा 'वर्दी', शहंशाह आलम की लघुकथा 'मेरा गुनाह' शामिल की गई। सतीशराज पुष्करणा का बिहार पर एक आलेख भी शामिल था। गुजरात से दीपक जगताप की लघुकथा 'पितृ तर्पण', मुकेश रावल की लघुकथा 'जिम्मेदारी' शामिल की गई। हिमाचल प्रदेश से कृष्ण बांसल की लघुकथा 'स्वप्न', असम से भीखी प्रसाद वीरेंद्र की लघुकथा 'बाघ और आदमी', नागालैंड से चितरंजन भारती की लघुकथा 'राहत कार्य', पश्चिमी बंगाल से शिव शारदा की लघुकथा 'सिर्फ रोटी के लिए' शामिल की गई।
दरअसल 'क्षितिज' के इस अंक में विभिन्न राज्यों में लघुकथा के लेखन की स्थिति को स्पष्ट करने का प्रयास सीमित संसाधनों में किया गया था, इसलिए अधिक पृष्ठों में सामग्री नहीं दी जा सकी, लेकिन अभी तक यह स्थापित हो चुका था कि क्षितिज का प्रत्येक अंक नई दृष्टि के साथ प्रस्तुत होता है। भोपाल से सोमदत्त ने साक्षात्कार के एक अंक का विज्ञापन सहयोग इस अंक में भी प्रदान किया। रमा लाहिरी का एक लेख लघुकथाएं और मंगला कथा साहित्य बहुत ही चर्चा में रहा। मध्यप्रदेश से सतीश राठी, सुरेश शर्मा, पवन शर्मा, रशीद दर्द,रामनारायण उपाध्याय, रमेश चंद्र, वेद हिमांशु, प्रताप राव कदम, डॉ नरेंद्र नाथ लाहा, डॉ उपेंद्र नाथ विश्वास, सूर्यकांत नागर, राजेंद्र मिश्र, संतोष राठी, सुरेश बजाज, रविंद्र कंचन, राजेंद्र पांडेय, रमेश अस्थिवर, राजेंद्र कुमार शर्मा,अशोक शर्मा भारती, जयप्रकाश मानस, सतीश खरे, चंद्रा सायता, चरण सिंह अमी, कमल पारुलकर, पारस दासोत, निशा व्यास, जया नर्गिस, तरशचंद्र जैन, सुभाष जैन, सुनीता मूणत,सुभाष त्रिवेदी,अनंत श्रीमाली, सतीश दुबे, विक्रम सोनी एवं डॉ. श्याम सुंदर व्यास की लघुकथाएं इसमें शामिल की गई।
वर्ष 1986 में क्षितिज की एक साथ दो प्रस्तुतियां आई थी। कुछ उनका भार, कुछ नौकरियों की व्यस्तता, इस सब ने वर्ष 1987 की गैप कर दी, पर हाँ, वर्ष 1988 में क्षितिज पुनः नए अंक के साथ सामने था।
क्षितिज
का यह अंक 175 पृष्ठों
का बना। सतीश राठी एवं अनंत श्रीमाली के संपादन
में यह अंक लघुकथा की तकनीक एवं
लघुकथा के मूल्यांकन पर केंद्रित रहा। एक ओर जहाँ प्रवेशांक में लघुकथा
प्रतियोगिता के द्वारा लघुकथा की सशक्तता,जीवंतता एवं
प्रामाणिकता को प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया, तथा बाद
के अंक में विभिन्न भाषाओं एवं प्रादेशिक भाषाओं में श्रेष्ठ लघुकथा लेखन को
प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया,वहीं क्षितिज के द्वारा
लघुकथा विधा के सार्वभौमिक स्वरूप एवं अकादमिक मूल्यों की स्थापना का प्रयास भी
किया गया। विभिन्न राज्यों में जब लघुकथा
की स्थितियों को पहले सामने लाकर रखा गया, तब उसके साथ ही यह
भी सोचा गया कि कुछ प्रमुख लघुकथाकारों को उनके लघुकथा लेखन पर समालोचनात्मक एवं
मूल्यांकन टिप्पणियों के साथ प्रस्तुत करना चाहिए। इसलिए इस कार्य को हाथ में लेकर वर्ष 1988 के अंक में 51
लघुकथाकारों के लघुकथा लेखन पर पांच वरिष्ठ समालोचक साहित्यकारों की
मूल्यांकन टिप्पणियों के साथ एवं चार विशिष्ट आलेखों को समाविष्ट कर यह अंक प्रस्तुत
किया गया। लघुकथा की तकनीक, शैली व शिल्प पर बातचीत के साथ
इसमें नौवें दशक के लघुकथा परिदृश्य एवं एकल लघुकथा संग्रहों पर भी चर्चा की गई। वह
समय ऐसा भी था जब लघुकथा पर बहुत सारे स्थानों पर बहुत सारी बेबुनियाद बहस चल रही
थी। तब क्षितिज ने यह तय कर लिया था कि हमें सिर्फ और सिर्फ लघुकथा को लेकर सार्थक
काम करना है। आलेख खंड में लघुकथा की सृजन प्रक्रिया पर शंकर पुणतांबेकर का आलेख, लघुकथा के रचना विधान और मूल्यांकन पर सतीश राज पुष्करणा का आलेख, नवें दशक के लघुकथा संकलनों पर अतुल मोहन प्रसाद का आलेख एवं एकल लघुकथा
संग्रहों पर महेंद्र सिंह महलान का आलेख इस अंक की विशेष उपलब्धि के रूप में सामने
आया। अंक का स्वरूप इस तरह से निर्धारित किया गया था कि, प्रत्येक
दस लघुकथाकारों के ऊपर एक लघुकथाकार द्वारा मूल्यांकन टिप्पणी की जाए। प्रथम खंड
में शंकर पुणतांबेकर, श्याम सुंदर अग्रवाल, सतीश राज पुष्करणा, डॉ उपेंद्र विश्वास, अंजना अनिल, पुष्पलता कश्यप, श्यामसुंदर
सुमन, सन्यासी, भीखी प्रसाद वीरेंद्र
और मार्टिन जान अजनबी पर डॉ. सतीश दुबे का मूल्यांकन आलेख था। दूसरे खंड में कमल
चोपड़ा, हीरालाल नागर, अतुल मोहन प्रसाद, अशोक लव, तरुण जैन, मुकेश जैन
पारस, तारीक असलम तस्नीम, मोहन सोनी,
राजेंद्र परदेसी, उमा शर्मा की लघुकथाओं पर
सूर्यकांत नागर का मूल्यांकन आलेख था। तृतीय खंड में राजकुमार निजात, पारस दासोत, सत्यनारायण सारू, पवन
शर्मा, अशोक मिश्र, साबिर हुसैन, अनिरुद्ध प्रसाद विमल, मदन शर्मा, नीलम और रमेश अस्थिवर की लघुकथाओं पर विलास गुप्ते का मूल्यांकनपरक आलेख था।
चतुर्थ खंड में नरेंद्र नाथ लाहा, शहंशाह आलम राजेंद्र
पांडेय, वेद हिमांशु, हनुमान प्रसाद
मिश्र, मदन अरोड़ा, सुरेंद्र मंथन, अंचल भारती, सिद्धेश्वर और रूप देवगुण की लघुकथाओं
पर चंद्रशेखर दुबे की मूल्यांकन टिप्पणी थी। अंतिम खंड में महेंद्र सिंह महलान, कुंवर प्रेमिल, रमेश चंद्र, पुष्कर
द्विवेदी, अनिल शूर आजाद, सुरेश जांगिड़
उदय, अशोक भाटिया, महेंद्र कुमार ठाकुर,
मुकेश शर्मा, शराफत अली खान और मोहम्मद
मोइनुद्दीन अतहर की लघुकथाओं पर रामविलास शर्मा का मूल्यांकनपरक आलेख था।
इसी अंक को पुस्तक रूप में 'मनोबल' के नाम से भी प्रकाशित किया गया।
अशोक शर्मा भारती, डॉ सतीश शुक्ल, डॉ अखिलेश शर्मा एवं डॉ दिलीप चौहान का इस अंक में विशेष सहयोग रहा।
वर्ष 1989 में क्षितिज के अधिकतर साथी नौकरियों के कारण इंदौर शहर से स्थानांतरित हो गए और एक कार्य जो लघुकथा को लेकर चल रहा था स्थगित का हो गया। मैं स्वयं भी इंदौर से स्थानांतरित हो गया था, लेकिन मन में आग यथावत लगी हुई थी। इसी भावना में वर्ष 1991 में मध्य प्रदेश के पांच लघुकथाकारों की सौ लघुकथाओं का एक संकलन 'समक्ष' के नाम से मेरे संपादन में प्रस्तुत हुआ। सर्वश्री पारस दासोत, राजेंद्र पांडेय उन्मुक्त, अशोक शर्मा भारती, पवन शर्मा एवं सतीश राठी की 100 लघुकथाओं की यह पुस्तक पुनः चर्चा में रही। शंकर पुणतांबेकर एवं राधेलाल बिजघावने द्वारा इस पुस्तक की भूमिका के आलेख लिखे गए। पंकज प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित इस पुस्तक पहली बार लोगों ने खरीदकर भी पढ़ी।
लगभग 10 वर्ष के अंतराल के बाद वर्ष 2001 में मध्यप्रदेश के व्यंग्य लेखन पर केंद्रित एक पुस्तक 'जरिये नजरिये' सतीश राठी एवं अनंत श्रीमाली के संपादन में प्रस्तुत हुई, जिसका लोकार्पण उज्जैन में डॉ शिवमंगल सिंह सुमन के द्वारा किया गया। इस कार्यक्रम में समावर्तन के संपादक डॉ प्रभात कुमार भट्टाचार्य भी मुख्य अतिथि के रुप में उपस्थित रहे।
वर्ष 2002 में नौकरीगत प्रवास से पुनः इंदौर में पदस्थापना मिली और इस वर्ष में न सिर्फ मेरा स्वयं का लघुकथा संग्रह 'शब्द साक्षी हैं' प्रकाशित हुआ अपितु क्षितिज का नया अंक भी उसी अनुराग के साथ पाठकों के समक्ष प्रस्तुत हो गया।
इस अंतराल के तारों को जोड़ने का कार्य, श्रीराम दवे के द्वारा अपने आलेख 'क्षितिज की जाजम और लघुकथा का विधा बनना' में किया गया। डॉ सतीश दुबे के षष्ठीपूर्ति प्रसंग पर उनकी लघुकथाओं को प्रकाशित कर अंक को गरिमामय बनाया गया। सूर्यकांत नागर ने लेखक की जागरूकता और 'लघुकथा का रचनात्मक पक्ष' पर अपना आलेख लिखा। बलराम अग्रवाल ने 'लघुकथा में कथावस्तु, कथानक और घटना' विषय पर अपना लेख प्रस्तुत किया। कई महत्वपूर्ण लघुकथाकारों की लघुकथाओं की प्रस्तुति के साथ, उज्जैन के दिवंगत लघुकथाकार श्री अरविंद नीमा की लघुकथाएं देकर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई।
'आकलन' स्तंभ के अंतर्गत 'गुफाओं से मैदान की ओर' पुस्तक के द्वारा लघुकथा की जमीन तैयार करने वाले भगीरथ के लघुकथा लेखन पर डॉ वेद प्रकाश अमिताभ का आलेख'भगीरथ की लघुकथाओं में व्यवस्था विरोध' एवं भगीरथ की कुछ लघुकथाएं प्रस्तुत की गई।
मालवांचल के लघुकथाकारों पर मेरा आलेख 'हिंदी लघुकथा की विकास यात्रा में मालवा का योगदान ' इस अंक में प्रकाशित हुआ,तथा पद्मश्री दादा रामनारायण उपाध्याय को श्रद्धांजलि देते हुए लघुकथा की परंपरा शीर्षक के अंतर्गत उनकी दो लघुकथाएं' अंगूर लोमड़ी और लड़की' तथा 'पुराण पंथी कछुआ और प्रगतिशील खरगोश' प्रकाशित की गई।
अभी तक क्षितिज के सारे प्रकाशनों में निरंतर पुस्तक समीक्षा के पत्र-पत्रिकाओं की प्राप्ति के कॉलम निरंतर जारी रहे और इस अंक में भी चैतन्य त्रिवेदी के लघुकथा संग्रह 'उल्लास 'पर बलराम की समीक्षा का प्रकाशन किया गया।
2004 में इंदौर शहर के पुनः स्थानांतरण हो गया और उज्जैन का भ्रमण करते हुए अंततः 2007 में मनावर में जाकर पदस्थापना हुई। स्टेट बैंक ऑफ इंदौर में शाखा प्रबंधक के दायित्व का निर्वहन करते हुए भी यहाँ पर राज ऑफसेट मनावर के सीमित संसाधनों से क्षितिज का नया अंक प्रकाशित किया। अभी तक क्षितिज के अंकों का कला पक्ष पारस दासोत ही संभालते रहे, लेकिन यहाँ पर एक विलक्षण प्रतिभा संपन्न व्यक्तित्व श्री विशाल वर्मा से मुलाकात हुई। उसके पूर्व उज्जैन में श्री मुकेश बिजौले के रेखांकनों से परिचित हो चुका था, अतः इस अंक का आवरण विशाल वर्मा के द्वारा तैयार किया गया,तथा भीतरी रेखांकनों में भी उनका एवं मुकेश बिजौले के चित्रों का उपयोग किया गया। आवरण पर मां दुर्गा का कलात्मक रेखांकन उसके बादामी बैकग्राउंड में उसे बहुत ही सुंदर स्वरूप प्रदान कर गया। यह अंक स्त्री विषयक लघुकथाओं पर केंद्रित था और लघुकथा में स्त्री विमर्श इसका प्रमुख आकर्षण था। सूर्यकांत नागर ने लघुकथाओं में नारी विमर्श विषय पर एक बहुत अच्छा लेख भूमिका के रूप में प्रस्तुत किया। पंजाब के लघुकथा परिदृश्य में तब तक स्त्री विषयक लघुकथाओं का बहुत सारा कार्य हो चुका था और श्याम सुंदर अग्रवाल के द्वारा पंजाब से तकरीबन बारह लघुकथाएं इस संदर्भ में इस अंक के लिए प्रस्तुत की गई। इसके अतिरिक्त तकरीबन 52 लघुकथाकारों की लघुकथाएं जो स्त्री विषयों से संबंधित थी, इस अंक में प्रकाशित की गई। लघुकथा की परंपरा में वीणा के पूर्व संपादक डॉ श्याम सुंदर व्यास को श्रद्धांजलि स्वरूप उन की लघुकथाएं दी गई तथा इसी अनुक्रम में इंदौर के ही एक अन्य लघुकथाकार श्री चंद्रशेखर दुबे को भी लघुकथा की परंपरा में श्रद्धांजलि देते हुए उनकी लघुकथाएं प्रकाशित की गई।
श्रीमती चित्रा मुद्गल से उनके उज्जैन प्रवास के दौरान सतीश राठी एवं राजेश सक्सेना ने स्त्री विमर्श पर बातचीत की थी,उसका प्रकाशन इस अंक की उपलब्धि रही। लघुकथा की पुस्तकों की समीक्षा का प्रकाशन भी इस अंक में किया गया। सतीश राठी को मिले ईश्वर पार्वती स्मृति सम्मान की रिपोर्ट भी इसमें थी,जो उनकी लघुकथा पुस्तक के लिए उन्हें प्रदान किया गया था। प्रकाशन लागत बढ़ने के बावजूद 90 पृष्ठ के इस अंक का मूल्य सिर्फ ₹15 रखा गया। क्षितिज के प्रकाशनों की गुणवत्ता को देखते हुए तार सप्तक के कवि गिरिजाकुमार माथुर ने एक पारदर्शी टिप्पणी मे लिखा था कि,'लघुकथा के विभिन्न क्षितिजों को तो क्षितिज ने रेखांकित किया ही है, उसने नई जमीन भी तोड़ी है। आज की जिंदगी की कशमकश की छोटी-बड़ी घटनाओं के लघु दृश्यबिंदुओं के माध्यम से उन्हें आदमी की संवेदना का हिस्सा बनाया है।'
पंजाब के लघुकथाकारों ने अभी तक लघुकथा के क्षेत्र में जो उल्लेखनीय कार्य किए उन्होंने क्षितिज को सदैव प्रभावित किया। इसीलिए क्षितिज का वर्ष 2012 का अंक मध्यप्रदेश- पंजाब लघुकथा विशेषांक के रूप में सामने आया। बीच में अंतराल तो था, लेकिन इस अंक ने उस अंतराल को भुला दिया। आवरण पर पारस दासोत का एक बहुरंगी चित्र उसे बहुत गरिमा प्रदान कर रहा था। पारस दासोत के द्वारा राजस्थान की लोक संस्कृति पर बनी हुई एक चित्र श्रंखला 'बनी ठनी' से प्रेरणा लेते हुए, अपनी चित्र श्रृंखला 'ठनी बनी' बनाई थी। उसी चित्र श्रृंखला में से एक चित्र इसका आवरण था, जिसमें एक महिला बन ठन कर हाथ में धनुष बाण लेकर तीर से अपने लक्ष्य पर निशाना साध रही है।
इस अंक के प्रारंभ में डॉक्टर पुरुषोत्तम दुबे ने हिंदी लघुकथा की सृजन प्रक्रिया और मध्य प्रदेश की शीर्षक से एक लेख में मध्यप्रदेश के लघुकथा लेखन को केंद्रित करते हुए जानकारी पूर्ण सामग्री दी है। मध्यप्रदेश के लघुकथाकारों की लघु कथाएं प्रथम खंड में दी गई हैं।
दूसरे खंड में पंजाब का लघुकथा संसार विशेष से श्याम सुंदर अग्रवाल का महत्वपूर्ण आलेख है, तथा पंजाब के प्रमुख लघुकथाकारों की लघुकथाएं दी गई है।
भारतीय स्टेट बैंक में स्टेट बैंक ऑफ इंदौर के विलय के बाद से नौकरीगत व्यस्तताएं बहुत बढ़ गई थी, अतः फरवरी 16 में बैंक से सेवानिवृत्ति के पश्चात वर्ष 2017 में क्षितिज का नवीन अंक प्रकाशित हुआ। पूर्व की तरह इस अंक का आवरण भी पारस दासोत का ही रहा। पारस दासोत का अवसान तो 2014 में हो गया, पर उनके पुत्र कुलदीप दासोत मेरे निरंतर संपर्क में रहे और पारस जी के द्वारा जो काम तैयार किया गया था उसमें से कुछ महत्वपूर्ण चित्रों को लेकर हम आगामी अंकों में प्रवेश करते गए।
इस अंक के आवरण पर जो चित्र था, उसमें एक आभासी चित्र पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का था। महत्वपूर्ण बात यह है कि इस पर उनके द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे। आवरण पेज में भारत के पूर्व राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से युक्त यह अंक सभी ने बहुत पसंद किया।
क्षितिज का यह अंक मेरे संपादन एवं श्री अशोक शर्मा भारती के सह संपादन में श्रद्धांजलि अंक के रूप में प्रस्तुत हुआ। श्रद्धांजलि खंड में स्वर्गीय पारस दासोत,स्वर्गीय सुरेश शर्मा एवं स्वर्गीय डॉ सतीश दुबे को श्रद्धांजलि देते हुए उनके चित्र परिचय के साथ उन पर एक आलेख और उनकी लघुकथाएं प्रस्तुत की गई थी।
पारस दासोत मेरे दिल के सदैव बहुत नजदीक रहे। जब वह गंजबासौदा में रहते थे, तब सिर्फ उनसे मिलने के लिए गंजबासौदा जाकर पूरी एक रात उनकी कला वीथिका में और उनके संचयन से गुजरते हुए अभिभूत होकर गुजारी थी। इसके बाद जब वह जयपुर शिफ्ट हो गए थे, तब भी एक बार जयपुर में उनके निवास पर जाकर उनकी पूरी कला वीथिका,जो अप्रतिम रूप से महत्वपूर्ण संग्रह के साथ तैयार की गई है, एवं बहुत ही अच्छे तरीके से संयोजित की गई है,को देखने का मौका मिल गया। पारस दासोत एक जुनून से भरे हुए कलाकार थे। जब उन्होंने लघुकथाएं लिखना शुरू की तो ढेर सारे प्रयोगों के साथ लघुकथा संग्रह प्रस्तुत किए, जिनमें हस्तलिखित लघुकथा संग्रह भी रहे। आज भी उनके कुछ हस्तलिखित संग्रह मेरे संकलन में हैं। उन्होंने कोयला शिल्प पर काम किया। लकड़ी के शिल्प पर काम किया और नदियों के किनारे भटकते हुए विभिन्न स्वरूप वाले पत्थरों का सुंदर संग्रहण किया। उनके संकलन में शेर पर बैठी दुर्गा,गणेश के विभिन्न स्वरूप, शिव के विभिन्न स्वरूप तथा और भी कई तरह के आकार जो उनकी कुशल दृष्टि ने खोजें, वह मौजूद हैं। आजकल उस संग्रहालय की देखरेख उनके पुत्र कुलदीप दासोत कर रहे हैं। लोहे का बनाया हुआ वजन उठाता एक कुली आज भी गंजबासौदा के रेलवे स्टेशन पर खड़ा हुआ है। उन पर जो आलेख मैंने इसमें लिखा, वह मेरी भावभीनी श्रद्धांजलि के रूप में ही था।
स्वर्गीय सुरेश शर्मा क्षितिज के प्रारंभ से ही हमारे सक्रिय साथी के रूप में जुड़े रहे। बहुत ही सहज और सरल व्यक्तित्व वाले सुरेश जी पर सूर्यकांत नागर का एक लेख इसमें शामिल है। सुरेश जी अपनी सादगी के साथ सदैव नैतिक और मानवीय मूल्यों के पक्षधर रहे। उनका लेखन भी उनके जैसा ही सहज और सरल रहा। उनकी कहानियों की पात्रा 'शोभा' सदैव चर्चित रही। अपनी लघुकथाओं में वह अपने आसपास को बहुत ही बारीक निरीक्षण के साथ समेट देते थे। उनकी एक लघुकथा 'राजा नंगा है: बहुत चर्चित रही है। जब भी मिलते थे, तो बड़ा हंसकर बताते थे कि, देखो फलां व्यक्ति ने किस तरह से मेरा शोषण किया। याने वह अपनी तकलीफ को भी
हंसकर ही बयान करते थे।
डॉ सतीश दुबे मेरे लघुकथा गुरु रहे हैं। उनका चले जाना मेरे लिए बड़ी व्यक्तिगत क्षति के रूप में था। लघुकथा के लिए उनका समर्पण देखने योग्य था। उनके नौ लघुकथा संग्रह प्रकाशित हुए। जिस वर्ष उनका देहावसान हुआ उसके पहले मैं अपनी पत्नी के साथ उनसे मिलने गया था।
जब हम लोग बैठे बातचीत कर रहे थे तो आदरणीय भाभी जी की ओर देखकर मुस्कुराते हुए वह बोले, 'सतीश भाई मेरा 55 प्रेम लघुकथाओं पर एक संग्रह आ रहा है, जो इनके लिए लिखा गया है और अगले वर्ष हम लोग मिलकर उसका लोकार्पण करेंगे।' पर प्रभु इच्छा कुछ और थी। उस लोकार्पण के पूर्व ही वह शरीर छोड़ गए। बाद में जब मैं आ. भाभी से मिला तो उन्होंने कहा,' मुझे तो बिल्कुल खाली कर गए। वह थे तो मैं सब कामों में लगी रहती थी। उनका सब कुछ समेटती रहती थी। अब क्या करूं? मैं तो बिल्कुल खाली हो गई। '
उनका यह दर्द हम सभी के लिए असहनीय रहा। आज भी आ. भाभी का समर्पण और उनका मित्रों के प्रति स्नेह, बार-बार आंखों के सामने आता है।
उनके आंगन में एक अशोक का पेड़ था जो उन्हें बहुत प्रिय था और उनकी कथाओं में भी आया है। उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए मेरा आलेख 'चला गया साहित्य के आंगन का अशोक' इस अंक में शामिल है। वे सदैव यह कहते थे कि, 'मैं लिखता नहीं हूँ, बल्कि अपने ही आसपास के जीवन, उससे जुड़े लोग, देखे भाले अप्रत्याशित अनुभव मुझे लिखने को मजबूर करते हैं। मैं चाहता हूँ मेरा लेखन जीवन से जुड़ा हो। इसकी चमक जिंदगी के अनुभव से मिले तथा इसके केंद्र में मनुष्य हो, उसकी तमाम कमजोरियां,अच्छाई, विवेक, चालाकी, चतुरता तथा आदमी होने की पहचान हो।' उनके बेटे परेश का भी एक आलेख' मजबूत इच्छाशक्ति वाले पापाजी', इसमें शामिल हुआ, जो एक पुत्र की आंख से पिता को देखता है।
डॉ सतीश दुबे के रचनात्मक व्यक्तित्व पर डॉ उमेश महादोषी के एक आलेख के कुछ अंश भी इसमें शामिल हुए।
पत्रिका के दूसरे खंड में बलराम अग्रवाल का एक आलेख 'लघुकथा भाषा और अभिव्यक्ति' के साथ लघुकथा खंड में ढेर सारी लघुकथाएं और क्षितिज की गतिविधियों की रिपोर्ट तथा पुस्तक समीक्षाएं शामिल रहीं।
इस समय तक क्षितिज की टीम के बाहर पदस्थ साथी सेवानिवृत्त होकर इंदौर आ चुके थे। बहुत सारे नए साथी भी क्षितिज में जुड़ चुके थे। नियमित मासिक गतिविधियां जारी थीं, लेकिन एक बड़े आयोजन का सपना जो मेरी आंखों में वर्ष 2002 से पल रहा था, उसे क्रियान्वित करने का मौका वर्ष 2018 में प्राप्त हुआ।
क्षितिज में साथी अशोक शर्मा भारती,अंतरा करवडे, वसुधा गाडगिल, सुरेश बजाज,कुलदीप दासोत,अखिलेश शर्मा, सुभाष त्रिवेदी, अनंत श्रीमाली, बी एल आच्छा,ब्रजेश कानूनगो,दीपक गिरकर, राममूरत राही, राकेश शर्मा,ज्योति जैन, पदमा सिंह,उमेश नीमा, बालकृष्ण नीमा, संतोष सुपेकर, कांता राय, अरुण धूत, अनघा जोगलेकर, अश्विनी कुमार दुबे, बीआर रामटेके, दिलीप जैन, दौलत राम आवतानी, जितेंद्र गुप्ता, ज्योति जैन, किशन लाल शर्मा, किशोर बागरे, कविता वर्मा, लक्ष्मी नारायण राठौर, ललित समतानी, पुरुषोत्तम दुबे, प्रताप सिंह सोढ़ी, राजेंद्र पांडेय, रमेशचंद्र, सतीश शुक्ल, सूर्यकांत नागर, कीर्ति राणा, रविन्द्र व्यास, विनीत शर्मा, विश्वबंधु नीमा, योगराज प्रभाकर, योगेंद्रनाथ शुक्ल, भरत भाई शाह, चरण सिंह अमी, नंदकिशोर बर्वे, नरेंद्र जैन, प्रदीप नवीन, गरिमा दुबे बहुत सारे साथी जुड़ चुके थे।
क्षितिज को इस वर्ष जून माह में पूरे 35 वर्ष पूर्ण हो रहे थे। इस प्रसंग पर यह योजना बनी कि 35 वर्ष की स्मृतियों को संजोकर एक स्मृति स्वरूप पत्रिका 'क्षितिज सफर 35 वर्षों का' निकाली जाए, तथा एक अंक जो नियमित है,वह 2011 से 2017 के मध्य रची गई श्रेष्ठ लघुकथाओं के संकलन के रूप में निकाला जाए।
कार्य बहुत ही बड़ा था लेकिन संकल्प उससे भी बड़े थे जब इसे योजनाबद्ध तरीके से करने का मन आगे बढ़ा तो फिर टीम में सक्रिय साथियों ने जी जान लगा दी और आयोजन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। इस आयोजन ने क्षितिज को एक मजबूत टीम प्रदान की जिसमें साथियों की कल्पनाशीलता सारे क्रिएशन में रंग भरती है। नाम अलग से लिखकर अन्य साथियों के सहयोग को छोटा नहीं करना चाहता, पर हाँ एक बात का उल्लेख जरूर करूंगा। क्षितिज को लेकर अंतरा करवड़े द्वारा बनाई गई आधा घंटे की फिल्म और नंदकिशोर बर्वे एवं टीम द्वारा लघुकथाओं का नाट्य मंचन इस आयोजन को हिमालय की ऊंचाई तक पहुंचाने में कामयाब रहा। अनघा जोगलेकर एवं किशोर बागरे के द्वारा बनाये गए लघुकथा पोस्टर बहुत सराहे गए। नेपथ्य में कई सारे साथियों ने नींव के पत्थर की तरह अलग कर पूरे कार्यक्रम को आकार दिया। आयोजन में पधारे अतिथियों ने यह कहा कि आपने तो लघुकथा को लेकर आयोजन का हिमालय खड़ा कर दिया है।
वर्ष 2018 के जून माह के आयोजन में ही क्षितिज संस्था के द्वारा लघुकथा के लिए स्थापित विभिन्न सम्मान प्रदान किए गए, जिसमें कथाकार बलराम, लघुकथाकार बलराम अग्रवाल, बीएल आच्छा, योगराज प्रभाकर, सतीशराज पुष्करणा,अशोक भाटिया, सुभाष नीरव, भागीरथ,कपिल शास्त्री,श्यामसुंदर दीप्ति, रविन्द्र व्यास, नंदकिशोर बर्वे, संदीप राशिनकर, कांता रॉय, किशोर बागरे, अनघा जोगलेकर आदि सम्मानित किए गए।
वर्ष 2018 के जून माह के आयोजन में ही क्षितिज संस्था के द्वारा लघुकथा के लिए स्थापित विभिन्न सम्मान प्रदान किए गए। क्षितिज संस्था के द्वारा कुछ बड़े सम्मान स्थापित किए गए। श्री बलराम अग्रवाल को लघुकथा के लिए उनके महत्वपूर्ण काम को रेखांकित करने के उद्देश्य से क्षितिज लघुकथा शिखर सम्मान वर्ष 2018 से सम्मानित किया गया ।श्री कपिल शास्त्री को क्षितिज लघुकथा नवलेखन सम्मान वर्ष 2018 से सम्मानित किया गया ,एवं श्री बी एल अच्छा को क्षितिज लघुकथा समालोचना सम्मान 2018 से सम्मानित किया गया।
इस आयोजन में जिन महत्वपूर्ण लघुकथा कारों को सम्मानित किया गया उनके नाम नीचे हैं
इसी आयोजन प्रसंग में क्षितिज का 200 पृष्ठों का नियमित अंक भी लोकार्पित हुआ।
इस प्रसंग पर प्रकाशित क्षितिज सफर 35 वर्षों का एक ऐतिहासिक दस्तावेज के रूप में सामने आई क्षितिज के इस सफर के समस्त महत्वपूर्ण साथियों के नाम इसमें शामिल थे। डॉक्टर पुरुषोत्तम दुबे ने क्षितिज के इस सफ़र पर एक विस्तृत आलेख तैयार किया था,जो इस अंक में प्रकाशित है। क्षितिज के द्वारा समकालीन हिंदी कविता पर और कहानी पर एक महत्वपूर्ण पुस्तिका 'अपने समय के बीच में 'का भी वर्ष 2005 में प्रकाशन किया गया था, जिसका जिक्र इसमें शामिल है।
डॉ पुरुषोत्तम दुबे का एक और आलेख 'इस दौर के लघुकथाकार इंदौर के लघुकथाकार' इंदौर के लघुकथा लेखन के पूरे इतिहास को समझते हुए लिखा गया, जो इसमें शामिल हैं। स्त्री सृजन और लघुकथा विषय पर अंतरा करवड़े का लेख एवं वैश्विक लघुकथा के ऐतिहासिक और वर्तमान परिदृश्य में भारतीय लघुकथा की भूमिका विषय पर शामिल की गई परिचर्चा ने इसे और ऊंचाई प्रदान की। क्षितिज की यादों का गलियारा के अंतर्गत, क्षितिज के प्राचीन अंकों में से चयन कर निरंजन जमीदार, रामनारायण उपाध्याय,शंकर पुणतांबेकर,सुरेश बजाज, चरण सिंह अमी, सुभाष त्रिवेदी, अनंत श्रीमाली, विक्रम सोनी, रमेश अस्थिवर, डॉ श्याम सुंदर व्यास, नरेंद्र कौर छाबड़ा, चंद्रशेखर दुबे एवं गोविंद सेन की लघुकथाएं यहाँ पर शामिल की गई। क्षितिज के 35 वर्षों के सफर को यादों के झरोखे से भी प्रस्तुत किया गया जिसमें यादों की चित्रमय झलकियां प्रस्तुत की गई थी। बहुत सारी हस्तियों के बहुत सारे पुराने समय के चित्र यहाँ पर यादों के रूप में प्रस्तुत हुए, जिन्होंने इसे उन सबके लिए भी संग्रह के योग्य बना दिया। पुरानी यादों के तकरीबन 82 चित्र एक फिल्म की तरह इसमें शामिल हुए और साथ में उस समय के समाचार पत्रों में प्रकाशित आयोजनों की 84 रिपोर्ट/समाचार /समीक्षा, एक कोलाज के रूप में इसमें शामिल हुईं। यह सब बड़ा ही अनूठा था।
लघुकथा कलश पर प्रताप सिंह सोढ़ी की समीक्षा, इसके अतिरिक्त अन्य पुस्तकों पर बृजेश कानूनगो, सुरेश उपाध्याय, अश्विनी कुमार दुबे, कविता वर्मा,सुरेश बजाज, वसुधा गाडगिल, सतीश राठी,ओम ठाकुर आदि के द्वारा प्रस्तुत समीक्षाएं, प्राप्त पुस्तकों और प्राप्त पत्रिकाओं की जानकारी, इसे संपूर्णता प्रदान कर गए। वर्ष 2018 क्षितिज के लिए अविस्मरणीय हो गया।
वर्ष 2018 की सुनहरी यादों के साथ क्षितिज संस्था ने जब वर्ष 2019 में प्रवेश किया तो उनके कंधों की जवाबदारी भी और अधिक हो गई, क्योंकि जब आप किसी शिखर पर पहुंच जाते हैं तो उस पर बना रहना भी जरूरी होता है। क्योंकि 2018 के सम्मेलन में लघुकथा की गुणवत्ता की बात हुई थी इसलिए 2019 का क्षितिज का अंक लघुकथा की सार्थकता की विवेचना पर केंद्रित किया गया और एक नए स्वरूप में अंक प्रस्तुत करने का निर्णय लिया गया। इस बार यह सूचना प्रदान की गई कि, आपने अपने इतने लंबे साहित्यिक/ लेखकीय परिदृश्य में जितनी लघुकथाएं पढ़ी हैं,उनमें से जो आपको श्रेष्ठ लघुकथा लगी है,या जिसे आपने बहुत पसंद किया है, उस लघुकथा को उस पर आपके द्वारा लिखी गई एक विवेचना टिप्पणी के साथ प्रेषित करें। इसके पीछे का आशय यह था कि, लेखक स्वयं के मोह से बाहर निकले और अच्छे साहित्य को पहचानना भी सीखें। हालांकि कुछ लोगों ने मौके का फायदा उठाकर अपने मित्रों की रचनाएं भी भेजी, पर हमने भी सप्रयास उन्हें हटाने का काम किया और चयन से बाहर कर दिया, क्योंकि हम अपने उद्देश्य को पूर्ण करना चाहते थे।
क्षितिज के पृष्ठों की निरंतर बढ़ती जा रही थी और इस बार का यह अंक 208 पृष्ठों का निकला। मेरे संपादन में निकले इस अंक के सहयोगी संपादक अश्विनी कुमार दुबे एवं अशोक शर्मा भारती थे। कला सहयोग पूर्ववत कुलदीप दासोत के द्वारा प्रेषित स्वर्गीय पारस दासोत का एक चित्र था। भीतरी रेखांकन भी उन्हीं के थे। क्षितिज के इस अंक की की सामग्री इतनी अधिक महत्वपूर्ण थी कि उसे पुस्तक के रूप में निकालना भी जरूरी लगा और 'सार्थक लघुकथाएं' शीर्षक से उसका पुस्तक आकार में प्रकाशन भी हुआ। पुस्तक का आवरण इंदौर के प्रसिद्ध चित्रकार श्री संदीप राशिनकर के द्वारा बनाया गया। मेरे संपादन में इंदौर के 10 लघुकथाकारों की 110 लघुकथाओं का संग्रह 'शिखर पर बैठकर :शीर्षक से प्रकाशित हुआ,जिसका खूबसूरत आवरण मनावर के विशाल वर्मा के द्वारा बनाया गया था, जो पहले भी क्षितिज संस्था के साथ जुड़े रहे थे। अंतरा करवड़े एवं वसुधा गाडगिल ने जहाँ मंच की व्यवस्थाओं को गंभीरता से संभाला वहीं
क्षितिज के सक्रिय साथी श्री दीपक गिरकर, अशोक शर्मा भारती, उमेश नीमा, बालकृष्ण नीमा के द्वारा वर्ष 2019 के इस आयोजन को नेपथ्य में बहुत ही जिम्मेदारी के साथ संभाला गया है। ज्योती जैन, सीमा व्यास,चेतना भाटी,दीपा व्यास,विजया त्रिवेदी, निधि जैन आदि कई स्थानों पर सक्रिय सहयोगी भूमिका में रहे।
क्षितिज संस्था के द्वारा वर्ष 2018 से प्रदेश स्तर का एक समग्र सम्मान भी प्रारंभ किया गया था जो वर्ष 2018 में उज्जैन के लघुकथाकार संतोष सुपेकर को दिया गया था,एवं 2019 में भोपाल की लेखिका कांता राय को दिया गया था।
2019 में वार्षिक आयोजन जून माह से हटकर कुछ कारणवश नवंबर माह में शिफ्ट करना पड़ा।
24 नवंबर 2019 को किए गए इस एक दिवसीय आयोजन में श्री सुकेश साहनी को क्षितिज लघुकथा शिखर सम्मान, श्री माधव नागदा को क्षितिज लघुकथा समालोचना सम्मान एवं श्री कुणाल शर्मा को क्षितिज लघुकथा नवलेखन सम्मान दिया गया। इस वर्ष एक विशिष्ट सम्मान क्षितिज लघुकथा शिखर सेतु सम्मान श्री श्याम सुंदर अग्रवाल को लघुकथा के लिए उनकी दीर्घकालीन सेवा के लिए प्रदान किया गया।
गत वर्ष के दो दिवसीय आयोजन के मुकाबले में, यह एक दिवसीय आयोजन तो जरूर था,लेकिन अपनी गुणवत्ता में बिल्कुल भी कम नहीं रहा।
लघुकथा विधा के लिए समर्पित क्षितिज संस्था 37 वर्ष पूर्ण कर चुकी है और अब उसके ऊपर नियमित रूप से जिम्मेदारी पूर्ण आयोजन करने की जवाबदारी आ गई है। कोरोना महामारी के चलते वर्ष 2020 के प्रारंभिक छह महीने केवल ऑनलाइन आयोजन के भरोसे निकले हैं, लेकिन क्षितिज संस्था प्रयासरत है कि नवंबर में पुनः गत वर्ष जैसा आयोजन हो जाए। क्षितिज का वर्ष 2020 का विशेष अंक लघुकथा समालोचना को कुछ नवीन तरीके से प्रस्तुत करने का विचार लेकर आगे बढ़ा हुआ है और इसके लिए आलेख कुछ लेखकों के द्वारा लिखे जा रहे हैं। फिलहाल एक और प्रकाशन का विचार कार्यकारिणी के भीतर विचाराधीन है, संभवत आगामी कुछ दिनों में उसकी भी घोषणा हो जाए।
यहाँ पर एक विशेष बात अपने पाठकों को बताना चाहूँगा। 'क्षितिज' से जुड़ने से कई नवांकुर रचनाकारों ने लघुकथा विधा को समझा, अपनी रचनाओं को परिष्कृत किया और ऐसे रचनाकारों ने लघुकथा विधा में अपने को स्थापित किया। खुशी की बात है कि क्षितिज के सदस्यों के क्षितिज के वरिष्ठ लघुकथाकारों के सहयोग तथा मार्गदर्शन से लघुकथा-संग्रह तक प्रकाशित हो चुके हैं। क्षितिज के कई सदस्यों की लघुकथाओं का अनुवाद विविध भाषाओं में हो चुका है। क्षितिज के कुछ सदस्यों की लघुकथाएं स्कूल और विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल हो चुकी हैं।
क्षितिज की वर्तमान टीम, जिसमें प्रमुख रूप से सक्रिय श्री दीपक गिरकर, राम मूरत राही, अंतरा करवड़े, वसुधा गाडगिल, अश्विनी कुमार दुबे, पुरुषोत्तम दुबे, योगेंद्र नाथ शुक्ल, सूर्यकांत नागर, उमेश नीमा, अखिलेश शर्मा, ललित समतानी, चरण सिंह अमी, ज्योति जैन, संतोष सुपेकर, दिलीप जैन, विनीता शर्मा, ब्रजेश कानूनगो, योगराज प्रभाकर, बालकृष्ण नीमा, अनघा जोगलेकर, नंदकिशोर बर्वे, दौलत राम आवतानी, अरुण धूत, सुरेश बजाज, अशोक शर्मा भारती, कांता रॉय,राजनारायण बोहरे, कुलदीप दासोत, गरिमा दुबे, सीमा व्यास, चेतना भाटी, आर एस माथुर, अर्जुन गौड़, विजया त्रिवेदी आदि लघुकथाकार हैं। निश्चित रूप से आगामी आयोजन को यह टीम अधिक आत्मीय एवं खूबसूरत बनाएगी, ऐसा मेरा विश्वास है।
सतीश राठी, आर 451, महालक्ष्मी नगर, इंदौर 452010
Mob.
: 9425067204