Thursday, 31 December 2020

संतोष श्रीवास्तव की लघुकथाएँ

जनगाथा’ में 2021 की शुरुआत हो रही है, वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती संतोष श्रीवास्तव की लघुकथाओं से… 

 ॥एक॥

अंतिम विदाई 

जामुन के पेड़ का दिल धक से रह गया। उसकी प्राणप्रिया मधुमालती पास के मौलश्री के पेड़ से जा लिपटी है । पूर्व की लाली अब धीरे-धीरे सुनहली होती जा रही है और पुरवईया के झोंकों में नौजवान मौलश्री के कोमल चिकने पात हवा में सरसरा रहे हैं । मधुमालती सिहर कर उससे कसकर लिपटी जा रही है। उसके बदन पर खिले दूधिया फूल मानो लजाकर घूंघट सा ओढ़ लेते हैं। हताश-निराश वह बुदबुदा उठा ।

"अभी तक तुम मेरी थीं न मधुमालती, पर अब मैं बूढ़ा हो चला हूं ।ठीक ही तो है। अब तुम्हें मुझसे रस रंग कहां से मिलेगा।" 

जामुन ने अपनी सूखी शाखों और तने को निहारा। जिन पर कोटर उभर आये हैं ।उसकी प्यारी मैना और तोते भी मौलश्री की शाख पर बसेरा कर चुके हैं । एक कराह उसके तने से उभरी और उसका रेशा रेशा चरमरा गया। 

हवा के झोंकों ने जामुन की जड़ों को हिला डाला। जड़ें मिट्टी छोड़ रही हैं। अंत निकट है। जामुन दाहिनी ओर झुक रहा है। उसकी शाखे भी चरमरा कर टूट रही हैं । आसमान मानो धरती पर बिछ गया है जिसके अनंत फैलाव में वह बरसों झूमा है ।

गिरते-गिरते जामुन ने देखा मौलश्री की बांहों में झूमती मधुमालती के फूल उससे विलग हो जामुन के जर्जर तने पर आ गिरे।

"आह मधुमालती, तुम्हारा ये अंतिम स्पर्श.... अब मैं सुख से मर सकूंगा।" 

॥दो॥

गरीब की बरसात

रिमझिम फुहारों से भीगते  जामुन, इमली और नारियल के पेड़ों को वे बालकनी में खड़ी अपलक निहार रही थीं। ठंडक बढ़ गई थी। हवाएं भी तेज हो गई थीं। बालकनी से अंदर वे अपने कमरे में आ गईं और रात को अधूरी पड़ी किताब उठाकर आराम से सोफे पर बैठ गईं।पांव सामने रखी तिपाई पर पसार दिए ।

"मैं जाऊं दीदी ,बरसात तेज होती दिख रही है।"

" अरे वाह इतने सुहावने मौसम में पकौड़े नहीं खिलाएगी?"

" दीदी देर"

" देर वेर कुछ नहीं ।जा गोभी, आलू, प्याज के मिक्स पकोड़े बना ।साथ में फेंटी हुई कॉफी।" 

और वे किताब के पन्नों में खो गईं। रिमझिम फुहारें पेड़ों से गुजरती मधुर ली में उन तक पहुंच रही थीं। विकास के साथ कितनी ही बरसातें इस तरह सड़क पर भीगते हुए...... समंदर की इठलाती लहरों में अठखेलियां करते गुजारी हैं ।अब विकास तो लंदन में..... और वे यहां एकाकी ....... 

बारिश तेज हो गई थी ।उन्हें पता ही नहीं चला कब सड़कें पानी से लबालब हो गईं। वे तो गरमा गरम पकौड़े और कॉफी के साथ बारिश का मजा ले रही थीं।

 तभी डोर बेल बजी।

 "आई, घर चल ।नाले का पानी घर में घुस आया है। बिस्तर, चटाई पानी में तैर रहे हैं। राशन के कनस्तर घर के बाहर बह कर आ गए हैं।"

" अरे तू काहे को आया रे ।पता तो है गरीब के घर बरसात ऐसे ही आती है।

॥तीन॥

गिद्ध 
अनाथ आश्रम में मुर्दनी छाई थी। आश्रम के सर्वेसर्वा सबके चहेते रुस्तमजी यानी अब्बू का अचानक हृदय गति रुक जाने से निधन हो गया था। रुस्तमजी की सबसे लाडली रूपा सहमी हुई उनके शव के पास बैठी थी। सुबह ही तो रुस्तम जी ने रुपा से कहा था "शहर में कर्फ्यू लगा है। बिना दूध की काली चाय पीनी पड़ेगी" चाय पीते हुए ही वे कुर्सी से नीचे गिर पड़े थे... और अब रुस्तम जी के पार्थिव शरीर पर मसालों का लेप लगाकर दुखमेनाशीनी यानी अंतिम संस्कार के लिए दख्मा (टॉवर ऑफ साइलेंस )पर रख दिया गया ।

रूपा को जैनी समझा रही थी 'अब्बू महान थे। अभी थोड़ी देर में गिद्ध आएंगे और अब्बू की पार्थिव् देह से अपनी भूख शांत करेंगे ।जैसे जीवित रहते हुए वे हम सबकी भूख शांत करते थे। वे मरने के बाद भी परोपकार कर रहे हैं।"

रूपा आँखें फाड़े आकाश की सीमा नापने लगी। कहीं एक भी गिद्ध न था । ये अपशकुन कैसा ?
शहर में सांप्रदायिक दंगों की आग चरम पर थी। बेकसूर लोगों की गिनती दंगों में मारे गए लोगों में शुमार होने लगी। गिद्ध वही मंडरा रहे थे ।कई शरीरों का मांस जो मिल रहा था। दख्मा गिद्धों के भारी पंखों की आवाज से वीरान हो गया था ।औरतों के जिंदा शरीर को भी गिद्ध नोच रहे थे। और असली गिद्धों को पहचानना मुश्किल हो रहा था।

 

परिचय : (श्रीमती) संतोष श्रीवास्तव 

कहानी,उपन्यास,कविता,स्त्री विमर्श,संस्मरण की अब तक अठारह किताबे प्रकाशित।

चार अंतरराष्ट्रीय ( मॉरीशस,कम्बोडिया ताशकन्द,बैंकॉक )तथा 20 राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार मिल चुके है।

जेजेटी विश्वविद्यालय राजस्थान से पीएचडी की मानद उपाधि। "मुझे जन्म दो माँ" स्त्री के विभिन्न पहलुओं पर आधारित पुस्तक रिफरेंस बुक के रुप में विभिन्न विश्वविद्यालयों में सम्मिलित।

संतोष जी की 6 पुस्तकों पर मुम्बई विश्वविद्यालय,एस एन डी टी महिला महाविद्यालय तथा डॉ आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा से एम फिल हो चुका है ।

राज ऋषि भर्तहरि मत्स्य विश्वविद्यालय अलवर राजस्थान से कहानी और उपन्यास दोनों पर संयुक्त रूप से पीएचडी लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ

से मेरी आत्मकथा "मेरे घर आना जिंदगी" के कथ्य एवं शिल्प का विवेचनात्मक अध्ययन : विशेष संदर्भ- 1990 ई. से अब तक की महिला साहित्यकारों की आत्म कथाएं

 यवतमाल से संत गाडगे बाबा अमरावती विश्वविद्यालय से कहानियों में नारी चेतना विषय पर पीएचडी हो रही है।


कहानी 'एक मुट्ठी आकाश' SRM विश्वविद्यालय चैन्नई में बी.ए. के कोर्स में तथा लघुकथाएँ महाराष्ट्र राज्य के 11वीं की बालभारती में।

संतोष जी की कहानियों, लघुकथाओं, और उपन्यासों के अंग्रेजी, मराठी, सिंधी, पंजाबी, गुजराती, तेलुगु, मलयालम, बांग्ला, ओड़िया, नेपाली, उर्दू, छत्तीसगढ़ी भाषाओं में अनुवाद हो चुके हैं।

राही सहयोग संस्थान रैंकिंग 2018, 2019 तथा 2020 में लगातार विश्व के टॉप 100 हिंदी लेखक-लेखिकाओं  में  शामिल।

'द संडे इंडियन' द्वारा प्रसारित  21वीं  सदी की 111 हिंदी लेखिकाओं में नाम शामिल।

भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा  विश्वभर के प्रकाशन संस्थानों को शोध एवं तकनीकी प्रयोग (इलेक्ट्रॉनिक्स) हेतु देश की  उच्चस्तरीय पुस्तकों के अंतर्गत 'मालवगढ़ की मालविका' उपन्यास का चयन।

केंद्रीय 'अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार मित्रता संघ' की मनोनीत सदस्य । जिसके अंतर्गत  26 देशो की प्रतिनिधि के तौर पर हिंदी के प्रचार,प्रसार के लिए यात्रा ।

सम्प्रति स्वतंत्र पत्रकारिता।

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Sunday, 27 December 2020

पिंजरा/आशा शर्मा

मुख्य दरवाजे के खुलने का आभास होते ही पिंजरे में बैठा तोता पंख फड़फड़ाने लगा... रमेश की भी आँखें चमक उठीं।  बेटा भीतर आया और एक निगाह दोनों पर डालकर  टेबल पर रखा टीवी का रिमोट उठा लिया।

"कितनी बार कहा है कि बोर हों तो टीवी चला लिया करें, लेकिन आप... " तोते की तरफ देखते हुए आगे के शब्द मुँह में रखे ही बेटे ने रिमोट का बटन दबा दिया.

"कोरोना... कोरोना... कितने नए संक्रमित हुए... कहाँ कितनी मौतें हुई... सरकार और समाज क्या कर रहे हैं... कैसे बचें... क्या करें... क्या न करें... हर चैनल यही समझा और दिखा रहा है!" कहकर रमेश ने वितृष्णा से मुँह फेर लिया। तभी एंकर चीखा...

"सरकार ने कोरोना को लेकर जो एडवाइजरी जारी की है। उसके अनुसार, पैंसठ वर्ष से ऊपर के बुजुर्ग और दस वर्ष से कम उम्र के बच्चों को घर से बाहर नहीं निकलने के निर्देश दिए गए हैं।" 

सुनते ही बेटे ने विजयी मुद्रा में पिता की तरफ देखा, मानो घर के मुख्य दरवाजे पर ताला लगाने के उसके फैसले के औचित्य पर मुहर लग चुकी हो।

रमेश अब इस पाँच सितारा कैद से उकता चुका है। कमोबेश यही हाल सामने के घर में रहने वाले बच्चे का भी है। माँ-पापा मुख्य दरवाजे पर ताला लगाकर ऑफिस चले जाते हैं। बच्चे के पास रह जाता है--एक स्मार्ट फोन और सामने गली में खुलने वाली खिड़की। ऑनलाइन क्लास पूरी होते ही बच्चा खिड़की पर आ खड़ा होता है और सुनसान गली को घूरता रहता है।

गली में कचरा बीनने वाले लड़कों और आवारा गाय-कुत्तों के अलावा कोई दिखाई नहीं देता।

एक दिन रमेश ने अपनी बालकनी से बच्चे को देखा तो दोनों मुस्कुरा दिए। लंबे समय के बाद दो बाहरी आदमजात आमने-सामने हुए थे।

स्मार्ट फोन वीडियो कॉल के भी काम आने लगा। बच्चा रमेश के साथ-साथ तोते से भी घुलमिल गया। घर वालों ने चैन की साँस ली क्योंकि आजकल दोनों तरफ से ही अकेलेपन की शिकायत नहीं आ रही थी।

"तुम बड़े होकर क्या करोगे?" एक रोज रमेश ने बच्चे से पूछा।

"कचरा बीनूँगा।" बच्चे ने क्षुब्ध अन्दाज में कहा। फिर व्यग्रता से गली में झांकने लगा, जहाँ कुछ बच्चे कंधे पर प्लास्टिक का थैला लटकाए, बिना मास्क एक-दूसरे के साथ हँसी-ठिठोली करते जा रहे थे। 

उन्हें देखकर तोता भी फड़फड़ाने और टें-टें करने लगा।