Thursday, 25 June 2020

उज्जैन और लघुकथा / सन्तोष सुपेकर

संतोष सुपेकर 
भगवान महाकाल, कवि कालिदास और गुरु गोरखनाथ का नगर है उज्जैन। यहाँ प्रतिवर्ष भव्य 'कालिदास समारोह' का आयोजन होता है और प्रति बारह वर्ष में सिंहस्थ (कुंभ ) मेला लगता है जिसमें करोड़ों श्रद्धालु आते हैं। मध्यप्रदेश के गठन के  बाद सबसे पहले विश्वविद्यालय की स्थापना उज्जैन में ही हुई थी।
 
साहित्य की हर विधा की तरह लघुकथा क्षेत्र में भी उज्जैन में काफी सृजन कार्य  हुए हैं। 1981 में श्री राजेन्द्र सक्सेना (अब स्वर्गीय) का संग्रह 'महंगाई अदालत में हाजिर हो' प्रकाशित हुआ था। कुछ वर्षों  के बाद 1990 में श्रीराम दवे के सम्पादन में  लघुकथा फोल्डर  'भूख के डर से' प्रकाशित हुआ था। 1996 में डाक्टर शैलेन्द्र पाराशर के सम्पादन में साहित्य मंथन संस्था से लघुकथा संकलन 'सरोकार' का प्रकाशन हुआ था जिसमें 20 रचनाकार शामिल थे। सन् 2000 में स्व. श्री अरविंद नीमा 'जय' की लघुकथाओं का  संग्रह 'गागर में सागर' नाम से प्रकाशित हुआ था जिसे उनके परिवार ने उनके देहावसान के बाद प्रकाशित करवाया था। इसमें उनकी 32 हिंदी और 22 मालवी बोली की लघुकथाएँ शामिल थीं। वर्ष 2002 में डाक्टर प्रभाकर शर्मा और सरस निर्मोही के सम्पादन में 'सागर के मोती' लघुकथा संकलन प्रकाशित हुआ  जिसमें उस समय आयोजित एक लघुकथा प्रतियोगिता के विजेताओं की भी रचनाऐं शामिल थीं। बैंककर्मियों की साहित्यिक संस्था 'प्राची' ने  सन् 2001-2002 के दरम्यान उज्जैन में लघुकथा गोष्ठियांँ आयोजित की थीं। इसी प्रकार श्री जगदीश तोमर  के निर्देशन में प्रेमचंद सृजन पीठ, उज्जैन ने भी लघुकथा गोष्ठियांँ आयोजित की थीं। बाद के वर्षों में  विभिन्न लघुकथाकारों के संग्रह/संकलन  प्रकाशित हुए जिनका वर्णन निम्नानुसार है

1. श्रीमती  मीरा जैन का 'मीरा जैन की सौ लघुकथाएं' वर्ष 2003 में,

2. सतीश राठी के सम्पादन में सन्तोष सुपेकर और राजेंद्र नागर 'निरन्तर' का संयुक्त लघुकथा संकलन 'साथ चलते हुए' वर्ष  2004 में, 

3. सन्तोष सुपेकर का 'हाशिये का आदमी' वर्ष 2007 में,

4. राधेश्याम पाठक 'उत्तम' का संग्रह 'पहचान' वर्ष 2008 में,

5. इसी वर्ष उन्हीं का मालवी बोली में लघुकथा संग्रह 'नी तीन में, नी तेरा में',

6. 2009 में  मोहम्मद आरिफ का 'अर्थ के आँसू' प्रकाशित हुआ।

7. सन 2009 में  ही राधेश्याम पाठक 'उत्तम' का संग्रह 'बात करना बेकार है'

8. सन्तोष सुपेकर का' बन्द आँखों का समाज' वर्ष 2010 में प्रकाशित हुआ।

9. 2010 में ही मीरा जैन का  '101 लघुकथाएं', 

10. मोहम्मद आरिफ का ' 'गांधीगिरी' लघुकथा संग्रह प्रकाशित हुआ।

11. 2011 में शब्दप्रवाह'  साहित्यिक संस्था द्वारा 198 लघुकथाकारों की रचनाओं से युक्त लघुकथा विशेषांक  संदीप 'सृजन' और कमलेश व्यास 'कमल' के सम्पादन में निकला।

12. वर्ष  2011 में  ही राजेंद्र नागर 'निरन्तर' का 'खूंटी पर लटका सच' प्रकाशित हुआ ।

13. वर्ष  2012 में प्रेमचंद सृजनपीठ, उज्जैन द्वारा प्रोफेसर बी. एल. आच्छा के सम्पादन में देशभर के 229 लघुकथाकारों का विशाल  242 पृष्ठों का लघुकथा संकलन 'संवाद सृजन' प्रकाशित हुआ। 14. सन् 2012  में ही डाक्टर संदीप नादकर्णी के संकलन 'नौ दो ग्यारह' में 11 लघुकथाएं संकलित थी।

15. इसी वर्ष राधेश्याम पाठक 'उत्तम' का संग्रह "पहचान"प्रकाशित हुआ।

16. वर्ष 2013 में सन्तोष सुपेकर का लघुकथा संग्रह "भ्रम के बाज़ार में"   प्रकाशित हुआ जिसमे 153 लघुकथाएं थी।

17. वर्ष 2013 में ही सन्तोष सुपेकर के सम्पादन में राजेंद्र देवधरे 'दर्पण' और राधेश्याम पाठक 'उत्तम' की  लघुकथाओं का फोल्डर 'शब्द सफर के साथी' प्रकाशित हुआ।

18. इसी वर्ष (2013 में) कोमल वाधवानी 'प्रेरणा' का  संग्रह 'नयन नीर' प्रकाशित हुआ। उल्लेखनीय है कि 'प्रेरणा' जी दृष्टिबाधित रचनाकार हैं।

19. 'बंद आँखों का समाज' (संतोष सुपेकर) का मराठी संस्करण 'डोलस पण अन्ध समाज' (अनुवादक श्रीमती आरती कुलकर्णी) भी 2013 में निकला।

20. 2015 मे  'प्रेरणाजी' का दूसरा लघुकथा संग्रह 'कदम कदम पर' निकला।

21-23. वर्ष 2016 में वाणी दवे का 'अस्थायी चारदीवारी', कोमल वाधवानी 'प्रेरणा' का  'यादों का दस्तावेज', मीरा जैन का 'सम्यक लघुकथाएं' लघुकथा संग्रह प्रकाशित हुए।

24. वर्ष 2017 में सन्तोष सुपेकर का चौथा लघुकथा संग्रह 'हँसी की चीखें' प्रकाशित हुआ।

25. 2018 में डाक्टर वन्दना गुप्ता के संकलन 'बर्फ में दबी आग' में  कुछ लघुकथाएँ सकलित थीं।

26. 2019 में मीरा जैन क 'मानव मीत लघुकथाएं" प्रकाशित हुआ।

इनके अलावा संस्था 'सरल काव्यांजलि, उज्जैन' द्वारा वर्ष  2018  एवम्  2019 में  समय-समय पर लघुकथा कार्यशालाएँ आयोजित की गईं जिसमें  डाक्टर उमेश महादोषी, श्यामसुंदर अग्रवाल, डाक्टर बलराम अग्रवाल, जगदीश राय कुलारियाँ, माधव नागदा, सतीश राठी, बी. एल. आच्छा, रामयतन यादव जैसी लघुकथा जगत की ख्यात हस्तियों ने शिरकत की।    शहर के साहित्यकार सन्तोष सुपेकर ने अनेक रचनाकारों की लघुकथाओं का अंग्रेजी अनुवाद भी किया है जो प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में छपता रहा है। सर्वश्री सतीश राठी, राजेन्द्र नागर 'निरन्तर' और सन्तोष सुपेकर की 20-20 लघुकथाओं का  बांग्ला भाषा में  हो चुका है।

विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में डाक्टर शैलेन्द्र कुमार शर्मा के निदेशन में कुमारी भारती ललवानी द्वारा 2003 में  'लघुकथा परम्परा में सतीश राठी का योगदान' विषय पर एम. फिल. स्तर का शोधकार्य हुआ। इसी प्रकार  'मीरा जैन की लघुकथाओं का अनुशीलन' विषय पर प्रशांत कुशवाहा ने डाक्टर गीता नायक के निदेशन में  विक्रम विश्वविद्यालय में शोध प्रस्तुत किया। यहीं पर डाक्टर धर्मेंद्र वर्मा ने लघुकथाकार स्व. चन्द्रशेखर दुबे के साहित्य पर शोध किया ।स्व.  डॉ. सतीश दुबे पर भी विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में शोध कार्य हुआ है। लघुकथा जगत के प्रमुख हस्ताक्षर श्री विक्रम सोनी (अब स्वर्गीय) भी उज्जैन से सम्बद्ध रहे हैं। संस्था 'सरल काव्यांजलि' ने वर्ष 2013 में उनके निवास पर जाकर श्री सोनी का सम्मान किया था। इसी प्रकार सतीश राठी और श्याम गोविंद  ने भी उज्जैन में रहकर लघुकथा क्षेत्र में काफी सृजन किया है। उज्जैन  जिले के तराना से डाक्टर इसाक 'अश्क' और श्री सुरेश शर्मा  (अब दोनों स्वर्गीय) के संयुक्त सम्पादन में 'समांतर' पत्रिका का लघुकथा  विशेषांक  निकला था।
संपर्क : सन्तोष सुपेकर, 31, सुदामा नगर, उज्जैन-456001 /
मो. : 9424816096

Thursday, 18 June 2020

इंदौर और लघुकथा / सतीश राठी


सतीश राठी
[सतीश राठी ने इस आलेख में लघुकथा के पल्लवन, पोषण और उन्नयन की दिशा में इंदौर जनपद के योगदान को रेखांकित किया है। इस आलेख में प्रकारांतर से उन्होंने पं॰ माधवराव सप्रे जी को भी याद किया है। सप्रे जी का आज 150वाँ जन्मदिन है। गत वर्ष भोपाल में ही उनकी कथा-रचना 'एक टोकरीभर मिट्टी' के बहाने इस तारीख को 'लघुकथा दिवस' घोषित किया गया था। उस अवसर पर सप्रे संग्रहालय, भोपाल के निदेशक पद्मश्री विजयदत्त श्रीधर और सप्रे जी के परिवार से कुछ लोग मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित थे। विजयदत्त जी ने अपने वक्तव्य में कहा था, कि ‘एक टोकरीभर मिट्टी’ लघुकथा नहीं, कहानी है। अपनी इस मान्यता के बावजूद वे उस ‘लघुकथा दिवस’ का हिस्सा बने थे, जिसका आधार ‘एक टोकरीभर मिट्टी’ था। यह औपचारिकता स्वयं हमने भी निभाई थी। सहमति-असहमति अपनी जगह। ऐसे प्रयास कहानी या उपन्यास के क्षेत्र में हुए हैं या नहीं, नहीं मालूम; लेकिन प्रथम  हिन्दी साप्ताहिक पत्र उदंत मार्तंड' के प्रकाशन की तिथि को उसके प्रकाशन की 150वीं वर्षगाँठ के अवसर पर  लखनऊ में सन् 1976 में ठाकुर प्रसाद सिंह जी ने 'पत्रकारिता दिवस' अवश्य घोषित किया-कराया था। विक्रमाब्द की तर्ज पर महर्षि दयानंद सरस्वती के अनुयायियों द्वारा 'दयानंदाब्द' चलता है और जैन धर्मावलम्बी जैनाब्द चलाते हैं। भारतेंदु हरिश्चंद्र के चहेतों ने 'हरिश्चंदाब्द' चलाने का प्रयत्न किया था, ऐसा उनके निधन के बाद छपी उनकी कुछ पुस्तकों की प्रिंट लाइन से पता चलता है। कार्य के उत्साह में बहुत-से गैर-जरूरी कार्यों और घोषणाओं का होना अस्वाभाविक नहीं है। जो लोग आठवें दशक से अब तक लघुकथा के कार्य-क्षेत्र से परिचित हैं, उन्होंने बहुत-से महल बनते-बिगड़ते देखे हैं। परस्पर अनावश्यक वैमनस्य अथवा निरर्थक कार्यावरोध की बजाय अपनी तार्किक मान्यताओं को सुदृढ़ बनाए रखें। सतीश राठी के इस आलेख की तरह म. प्र. के उज्जैन, भोपाल आदि और छत्तीसगढ़ के रायपुर आदि तथा अन्य प्रदेशों व नगरों से भी लघुकथा के योगदान को रेखांकित करते लेख आएँगे तो उन सबको मिलाकर एक बड़ा परिदृश्य सामने आ सकेगा।—बलराम अग्रवाल]

                                                   साथियो! 
पं॰ माधवराव सप्रे
 आज 19 जून 2020 लघुकथा दिवस के रुप में मनाया जा रहा है । आज श्री माधवराव सप्रे का जन्मदिन है  और उनके जन्मदिन के प्रसंग में  लघुकथा शोध केंद्र भोपाल के द्वारा  आज के दिन को  लघुकथा दिवस के रूप में  घोषित किया गया है ।
रामनारायण उपाध्याय
आपको मैं यह बताना चाहूंगा कि इंदौर शहर लघुकथा का सबसे प्रारंभिक और सबसे महत्वपूर्ण स्थान रहा है। डॉ सतीश दुबे का पहला लघुकथा संग्रह 'सिसकता उजास' वर्ष 1974 में प्रकाशित हुआ था। वीणापत्रिका जो हिंदी साहित्य समिति इंदौर से प्रकाशित होती है, उस पत्रिका में डॉ श्याम सुंदर व्यास ने बतौर संपादक लंबे समय तक लघुकथाओं का प्रकाशन किया है। लघुकथा की पहली पत्रिका 'आघात 'जो बाद में फिर 'लघु आघात' के नाम से प्रकाशित हुई, इंदौर शहर से ही प्रारंभ हुई ।उसके प्रणेता डॉ सतीश दुबे रहे और संपादक श्री विक्रम सोनी। अन्य संपादकीय साथियों के रूप में सर्वश्री वेद हिमांशु, महेश भंडारी ,चरण सिंह अमी ,सतीश राठी, राजेंद्र पांडेय आदि लोग रहे। कालांतर में यह पत्रिका जब बंद हो गई तो 'क्षितिज 'संस्था की स्थापना हुई और लघुकथा की पत्रिका के रूप में 'क्षितिज' पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ हुआ ,जो आज भी सतत जारी है ।
अपने शहर के दिवंगत लघुकथाकारों का जिक्र करने के पहले मैं मालवा निमाड़ के लघुकथा के पितृपुरुष पद्मश्री दादा  राम नारायण जी उपाध्याय का जिक्र करना चाहूंगा जिन्होंने लघुकथा को बहुत स्नेह प्रदान किया है । मध्य
एन उन्नी
प्रदेश के परिदृश्य में उस समय पद्मश्री दादा रामनारायण उपाध्याय लघुकथाएं लिखते रहे हैं। दादा का जब मैंने एक साक्षात्कार लिया था ,तब उनसे लघुकथा की लंबी बातचीत हुई । क्षितिज के लिए यह महत्वपूर्ण भी है कि, उसके आयोजनों में दादा के साथ विष्णु प्रभाकर, मालती जोशी जैसे लोग इंदौर आकर शामिल हुए  । क्षितिज के 35 वर्ष के सफर पत्रिका में विस्तार से इन बातों का उल्लेख है। मध्य प्रदेश की लघुकथा परंपरा इतनी समृद्ध है कि खंडवा के श्रद्धेय माखनलाल चतुर्वेदी का नाम भी लघुकथा के साथ जुड़ा हुआ है ।
सुरेश शर्मा
  1. इंदौर शहर एक ऐसा शहर रहा जो लघुकथा को बहुत प्रेम करता था। उस समय में निरंजन जमीदार के द्वारा मालवी में भी लघुकथाएं लिखी गई ।चंद्रशेखर दुबे इंदौर के प्रमुख लघुकथाकार के रूप में रहे। डॉ सतीश दुबे ने अपना पूरा जीवन एक प्रकार से लघुकथा के लिए ही समर्पित किया। क्षितिज के साथी श्री सुरेश शर्मा भी लघुकथा के लिए बहुत सक्रिय रहे । बुजुर्ग जीवन की लघुकथाओं का उनका एक संग्रह  बहुत चर्चा में रहा। आज जब हम अपने सारे दिवंगत  लघुकथाकार साथियों का स्मरण कर रहे हैं  ,तो यह देख रहे हैं कि एक लंबी कड़ी इंदौर की रही है।श्री रमेश सिंह छाबड़ा' अस्थिवर'  एक पत्रिका शब्दवर का संपादन करते थे। हरसिद्धि पुल के पास उनका टेंट हाउस था और वहां से सारी साहित्यिक गतिविधियां वह संचालित करते रहे।
         मैं स्वयं वर्ष 1977 से लघुकथा के इस आंदोलन से संलग्न रहा हूं और उस समय की
पारस दासोत
सारी घटनाओं का साक्षी भी ।जब भी वीणा कार्यालय जाना होता, डॉ व्यास ऊपर कार्यालय में बुला लेते और आगे होकर कहते,: राठी जी लघुकथा भेजो वीणा में छापना है'। इतने सहज और सरल व्यक्तित्व इसी प्रकार डॉ सतीश दुबे सदैव लघु कथाएं लिखने के लिए प्रेरित करते रहे वह मेरे लघुकथा गुरु रहे ।चंद्रशेखर दुबे जब भी मिलते अपनी कोई नई लघुकथा सुना देते। साहित्य संगम संस्था की श्री निरंजन जमीदार के यहां पर जब गोष्ठी होती तो वह अपनी कोई लघुकथा जरूर सुनाते । श्रीविक्रम सोनी पर लघुकथा एक जुनून की तरह हावी थी। उन्होंने निरंतर लघुकथाएं लिखी भी और पत्रिका को भी बड़े मन से निकाला। बाद में अलग बात है कि वे इस विधा से बहुत दूर हो गए।  एक और व्यक्ति का नाम यहां पर लेना चाहूंगा श्री अरविंद नीमा। शारीरिक रूप से विकलांग लेकिन मन से बहुत ही सशक्त। शरीर का धड़ काम नहीं करता था, लेकिन मस्तिष्क सजग और सक्रिय ।आकाशवाणी के हवामहल के लिए निरंतर नाटक लिखा करते थे।  लघुकथाओं के क्षेत्र में उन्होंने बड़ा काम किया है। अपनी आजीविका के लिए घर पर सीए के छात्रों को भी पढ़ाया करते थे। उसी दौर में भोपाल से कृष्ण कमलेश भी लघुकथा को लेकर बहुत उत्साहित रहे और उन्होंने इस विधा के लिए बहुत काम किया। श्रीमती रेखा कारडा  इंदौर से लघुकथा कार के रूप में रही।
 जिन दिनों क्षितिज पत्रिका का प्रारंभ हुआ उन दिनों गंज बासौदा से पारस दासोत का भी बहुत नाम चर्चा में था। उन्होंने ना सिर्फ लघुकथा पर 14 से अधिक किताबें लिखी हैं ,अपितु क्षितिज के तकरीबन समस्त अंकों में आवरण पारस दासोत ने हीं प्रदान किया है और वह भी निशुल्क। उस समय प्रकाशन के संसाधन बहुत सीमित और बहुत श्रम साध्य थे ।तकनीक बहुत पुरानी फिर भी मेहनत के साथ लघुकथा की जमीन बनाने का काम इंदौर के लघुकथाकारों ने किया।
जब आपके पास कोई साधन संपन्नता ना हो, और विधा को प्रकाशन माध्यम इतना महत्व नहीं देते हों उस वक्त में लघुकथा के लिए लड़ाई करना और उसे एक विधा तक लाने का काम करने में क्षितिज संस्था के साथी भी कभी पीछे नहीं रहे।
आज दिन दिवंगत लघुकथाकारों की लघुकथाओं का प्रस्तुतीकरण किया जा रहा है वह सभी लघुकथाकार  विधा के लिए नीव के पत्थर रहे हैं। हम इन्हें प्रणाम करते हुए आज लघुकथा दिवस के प्रसंग पर इनकी  लघुकथाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं । इस प्रस्तुति में इन दिवंगत लघुकथाकारों की एक लघुकथा उनके चित्र के साथ प्रस्तुत की जा रही है। उन लघुकथाओं को पढ़ने से हमारे नवोदित लेखकों को निश्चित रूप से इस विधा की ताकत का एहसास होगा।
 इसके साथ में एक और महत्वपूर्ण सूचना यह है कि, क्षितिज संस्था एवं अनुध्वनि स्टूडियो के द्वारा संयुक्त रूप से निर्मित क्षितिज के आयोजनों से संबंधित एक वीडियो यहां पर प्रस्तुत किया जा रहा है। यह वीडियो इंदौर शहर की धड़कन को प्रस्तुत करता है और शहर में लघुकथा की विकास यात्रा को रेखांकित करता है। निश्चित रूप से यह वीडियो भी आप सब पसंद करेंगे ऐसा मेरा विश्वास है ।साथी श्रीमती अंतरा करवड़े के द्वारा इससे बहुत मेहनत के साथ बनाया गया है।
 इंदौर शहर वर्तमान में भी अपनी पूरी लगन और ताकत के साथ लघुकथा विधा को गुणवत्ता पूर्ण तरीके से आगे और आगे ले जाने का काम कर रहा है। क्षितिज संस्था के माध्यम से इंदौर के बहुत सारे लघुकथाकार इस कार्य में संलग्न हैं। निश्चित रूप से आने वाला वक्त लघुकथा के लिए बहुत ही उज्जवल है।

सतीश राठी
अध्यक्ष: क्षितिज, इंदौर