-->
ठाकुर साहब के घर औरतों का जमघट था। ढोलकी की थाप पर लोकगीत गूँज रहे थे। ठाकुर साहब के घर में पहली बार लड़का पैदा हुआ था। अत: हर तरफ हर्षोल्लास का आलम था। पास ही से गुजरती गंगादेई ने यह-सब देखा तो चौखट के अन्दर धँसते हुए पूछा—“अरी चमेली! क्या हुआ है री ठकुराइन को?”
॥1॥ पैदाइशी दीवार
फोटो:आदित्य अग्रवाल |
फोटो:आदित्य अग्रवाल |
“अरी कुँअर साहब आए हैं,” चमेली खिलकर बोली,“बोत सोणी सकल-सूरत है…बिल्कुल ठाकुर साहब पर गए हैं…सपूत हैं एकदम सपूत…”
सहसा गंगादेई को ध्यान आया।
“अरी, और कुछ सुना है…हरिया चमार की बहू के छोरा पैदा हुआ है या छोरी?”
“होता क्या, कलुआ हुआ है,” हाथ नचाते हुए चमेली बोली,“उस करमजले के मारे हरिया फूला फिर रहा है।”
अब वे दोनों नाक सिकोड़ने लगी थीं।
(रूपसिंह चन्देल द्वारा संपादित लघुकथा-संकलन ‘प्रकारांतर’(1991) से)