‘जंगल में आदमी’ के बाद कथाकार अशोक भाटिया का दूसरा लघुकथा संग्रह ‘अंधेरे में आँख’ आया है। इस संग्रह में उनकी कुल 95 लघुकथाएँ संग्रहीत हैं। ‘जनगाथा’ के इस अंक में प्रस्तुत हैं उक्त संग्रह से तीन लघुकथाएँ—
॥1॥ पसीने की कहानी
एक बहुत अमीर आदमी था। उसके पास बहुत बड़ा महल था। देशी-विदेशी लंबी कारें थीं। एक और दो नम्बर की अकूत संपत्ति थी। जीवन में सुख की खोज भी, मानो उसी ने की थी।
लेकिन उसकी एकमात्र समस्या थी कि उसे पसीना बहुत आता था। घर में एयर-कंडीशनर लगे थे। फिर भी; घर से बाहर निकलने या पाखाना जाते समय वह पसीने से नहा उठता था। उसकी आस्तीनों और पैरों के नीचे से पसीना बहुत निकलता था। ऐसे में उसके कपड़े और परफ्यूम—सब बेकार हो जाते थे। वह सोच में डूब गया…इस पहाड़ को कैसे पार करे! दसों दिशाओं में खास आदमी दौड़ाए गए। कई तरह की दवाएँ आज़मा कर देख लीं। पर पसीना जस का तस था। ठाठ-बाट में उसकी रुचि कम होती गई। उसकी चिंता बढ़ती गई। उसकी सेहत गिरने लगी।
आखिर उसके मंत्रियों ने आपात-बैठक करके, एक उपाय निकाला। सारे राज्य में विज्ञापित करवा दिया कि जो भी उसका पसीना बहना बंद कर देगा, उसे मुँह-माँगा ईनाम दिया जाएगा।
कई वैद्य और डॉक्टर आए। सभी ने अपनी-अपनी समझ से उसके लिए दवाएँ बना कर दीं। पर उसका पसीना था कि बंद होने का नाम ही न लेता था।
इसी चिंता में वह दिनों-दिन सूखता चला गया। आखिर एक दिन उसकी मृत्यु हो गई। तब कहीं जाकर उसको पसीना आना बंद हुआ।
॥2॥ शेर और बकरी:दूसरी लघुकथा
भरपेट मांस खाकर शेर बकरी की तलाश में निकल पड़ा। भटकता हुआ वह जंगल से बाहर निकल गया। थोड़ी दूरी पर एक कस्बा था। शेर उधर ही चल पड़ा। कस्बे के बाहर कुछ बकरियाँ एक घाट पर पानी पी रही थीं। शेर ने कुछ देर प्रतीक्षा करना ही ठीक समझा। पानी पीकर सारी बकरियाँ चल पड़ीं। सिर्फ एक बकरी रह गई।
शेर चुपके-से उसके निकट जाकर बोला,“थोड़ा-सा पानी मैं भी पी लूँ?”
बकरी ने सोचा,“मुझे कितना महत्व दे रहा है!…इतना तो चुनावों में विधायक भी जनता को नहीं देता!!” उसने आँख झपककर स्वीकृति दे दी, हालाँकि घाट उसका नहीं था।
इस प्रकार शेर ने शिकार के लिए नए घाट पर अपनी जगह बना ली।
॥3॥ एक बड़ी कहानी
पढ़ने की सनक आदमी से पढ़वा लेती है। मक़सद है पढ़ना। कहाँ तक पढ़ा, कैसे पढ़ा—यह महत्व नहीं रखता।
पिछले दिनों मुझे कुरआन शरीफ पढ़ने की ललक लगी। मैं रामचरितमानस, गीता और गुरुग्रंथ साहिब तो पढ़ चुका हूँ। पर अब हालात ऐसे हैं कि पढ़ने के लिए समय ही नहीं निकाल पाता। दफ्तर के बाद घर की चिल्ल-पौं से ही फुरसत नहीं मिलती।
मैंने क़ुरआन शरीफ जैसे-तैसे पढ़ने के बाद सोचा कि अब मित्रों से इस पर चर्चा की जाए। रामजीलाल मुझे गाहे-बगाहे मिल जाता है। सुबह वह राशन की दुकान पर मिल गया। मैंने उसे बताया कि पिछले दिनों मैंने क़ुरआन शरीफ पढ़ा है।
मैं आगे कुछ कहता कि उससे पहले ही वह बोला—“अरे! हिन्दू होकर मुसलमानों का धर्मग्रंथ पढ़ता है? तू सच्चा हिन्दू नहीं हो सकता।” और अपना सामान उठाकर वह तेजी से मुड़ गया।
दोपहर को, जब मैं शहर के मशहूर—इरफान टेलर से कमीज लेने गया, तो उसे भी बताया कि वक्त की कमी के बावजूद मैंने खाना खाते, चाय पीते हुए दो महीनों में ही पूरा क़ुरआन शरीफ पढ़ लिया है।
दरअसल, इरफान उस वक्त खाली था सो बातचीत का मौका था।
पर वह बोला—“जनाब, आपने यह अच्छा नहीं किया कि खाने-पीने के साथ इतने पाक ग्रंथ को पढ़ा। इसे पढ़ने की बाकायदा एक तहजीब होती है!”
मेरे पास चुप रह जाने के अलावा कोई चारा न था।
क़ुरआन शरीफ में क्या है, क्यों है?—इस पर चर्चा का इंतजार है। आप में-से है कोई?
जन्म : 5 जनवरी, 1955 को अंबाला छावनी(हरियाणा) में
शिक्षा : एम ए (हिन्दी), पी-एच डी
मौलिक पुस्तकें : समकालीन हिन्दी समीक्षा(आलोचना, 1979), जंगल में आदमी(लघुकथा संग्रह, 1990), समुद्र का संसार(बाल साहित्य, 1991/हरियाणा साहित्य अकादमी से प्रथम पुरस्कृत), समकालीन हिन्दी कहानी का इतिहास(शोध, 2003), सूखे में यात्रा(कविता संग्रह, 2003), हरियाणा से जान-पहचान(बाल साहित्य, 2004),
संपादित पुस्तकें : श्रेष्ठ पंजाबी लघुकथाएँ(1990), चेतना के पंख(1995), पेंसठ हिन्दी लघुकथाएँ (2001), श्रेष्ठ साहित्यिक निबंध(2002), निर्वाचित लघुकथाएँ(2005), अनुवाद, अनुभूति और अनुभव(2006), विश्व साहित्य से लघुकथाएँ(2007)
अनेक साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित।
संपर्क : 1882, सेक्टर 13, करनाल-132001(हरियाणा)
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